भारतीय राजव्यवस्था (BAPS-N-202) PYQ'S (HINDI)


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भारतीय राजव्यवस्था 

PYQ 17-07-2025

SECTION A

1. प्राचीन भारत से लेकर औपनिवेशिक शासन काल तक के संवैधानिक विकास की प्रक्रिया पर विस्तृत लेख लिखिए।

भारत में संवैधानिक विकास की प्रक्रिया प्राचीन काल से औपनिवेशिक काल तक फैली हुई है। प्राचीन भारत में समाज को धर्म, परंपराओं और धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, मनुस्मृति और अर्थशास्त्र के माध्यम से शासित किया जाता था। इन ग्रंथों में शासकों और प्रजा के लिए दिशा-निर्देश होते थे और इन्हें कानून का स्रोत माना जाता था। शासन में राजधर्म की अवधारणा महत्वपूर्ण थी, और निर्णय सभा तथा समिति जैसी संस्थाओं द्वारा लिए जाते थे।

मध्यकाल में दिल्ली सल्तनत और मुगल शासन के दौरान प्रशासनिक ढांचे बने, लेकिन आधुनिक अर्थों में संवैधानिक सिद्धांतों की कमी थी। शासक की इच्छा ही सर्वोपरि मानी जाती थी।

संवैधानिक विकास में सबसे बड़ा बदलाव ब्रिटिश शासनकाल में आया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश संसद के चार्टरों और अधिनियमों के आधार पर प्रशासन शुरू किया। प्रमुख संवैधानिक विकास इस प्रकार हैं:

  • 1773 का विनियामक अधिनियम: ब्रिटिश नियंत्रण की शुरुआत।

  • 1784 का पिट्स इंडिया अधिनियम: ब्रिटिश सरकार की भूमिका बढ़ी।

  • चार्टर अधिनियम (1813, 1833, 1853): प्रशासन का केंद्रीकरण।

  • 1858 का भारत सरकार अधिनियम: कंपनी शासन का अंत, क्राउन का सीधा शासन।

  • भारतीय परिषद अधिनियम (1861, 1892): भारतीयों की सीमित भागीदारी।

  • 1909 का मॉर्ले-मिंटो सुधार: पृथक निर्वाचिका की शुरुआत।

  • 1919 का मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार: प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था।

  • 1935 का भारत सरकार अधिनियम: संघीय ढांचा और प्रांतीय स्वायत्तता की स्थापना, आधुनिक संविधान का आधार।

यह क्रमिक प्रक्रिया भारत में लोकतांत्रिक शासन की नींव बनाती है, जो अंततः 1950 में संविधान के लागू होने के साथ पूर्ण हुई।


2.  भारतीय संविधान की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

  • विश्व का सबसे लंबा संविधान

  • कई स्रोतों से लिया गया (ब्रिटेन, अमेरिका, आयरलैंड आदि)

  • संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य

  • मजबूत केंद्र के साथ संघीय व्यवस्था

  • संसदीय शासन प्रणाली

  • मौलिक अधिकार और कर्तव्य

  • राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत

  • स्वतंत्र न्यायपालिका और न्यायिक पुनरावलोकन

  • एकल नागरिकता

  • सर्वजनिक वयस्क मताधिकार

  • आपातकालीन प्रावधान

  • संशोधन की प्रक्रिया (लचीली और कठोर दोनों)

  • अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान


3. भारतीय शासन प्रणाली में संघीय ढांचे की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? केंद्र राज्य संबंधों की आलोचनात्मक समीक्षा करते हुए समझाइए।

-प्रमुख विशेषताएँ:

  • शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों में – संघ, राज्य और समवर्ती।

  • लिखित संविधान के माध्यम से स्पष्ट विभाजन।

  • संविधान की सर्वोच्चता।

  • विवादों के समाधान के लिए स्वतंत्र न्यायपालिका।

  • केंद्र में द्विसदनीय विधायिका।

केंद्र-राज्य संबंध – आलोचनात्मक समीक्षा:

  • केंद्र सरकार को विशेष रूप से आपातकाल की स्थिति में अधिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।

  • राज्यों की वित्तीय निर्भरता केंद्र पर है।

  • राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र द्वारा की जाती है और वह कभी-कभी केंद्र के हित में कार्य करता है।

  • अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) का अतीत में दुरुपयोग हुआ है।

  • हाल के वर्षों में सहकारी संघवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है जैसे नीति आयोग के माध्यम से।

भारत का संघवाद अक्सर "अर्द्ध-संघात्मक" कहा जाता है, क्योंकि इसमें संघीय और एकात्मक दोनों प्रकार की विशेषताएँ शामिल हैं।


4. संविधान में दिए मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिए तथा दोनों के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।

मौलिक अधिकार:
संविधान के भाग-3 (अनुच्छेद 12 से 35) में वर्णित मौलिक अधिकार नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी देते हैं। ये अधिकार राज्य द्वारा अतिक्रमण से नागरिकों की रक्षा करते हैं। मुख्य छह प्रकार हैं:

  1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14–18)

  2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19–22)

  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23–24)

  4. धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25–28)

  5. संस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29–30)

  6. संवैधानिक उपचार का अधिकार (अनुच्छेद 32)

मौलिक कर्तव्य:
42वें संविधान संशोधन (1976) के द्वारा अनुच्छेद 51A (भाग-4A) जोड़ा गया, जिसमें नागरिकों के 11 मौलिक कर्तव्यों का वर्णन है, जैसे:

  • संविधान, राष्ट्रध्वज व राष्ट्रगान का सम्मान करना

  • राष्ट्र की संप्रभुता और एकता की रक्षा करना

  • पर्यावरण की रक्षा करना

  • वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना

  • सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना

अंतर:

मौलिक अधिकारमौलिक कर्तव्य
संवैधानिक रूप से न्यायालय में लागू होते हैंन्यायालय में लागू नहीं होते
नागरिक को राज्य के खिलाफ सुरक्षा देते हैंनागरिक की जिम्मेदारी तय करते हैं
नकारात्मक स्वरूप में होते हैं (राज्य क्या नहीं कर सकता)सकारात्मक स्वरूप में होते हैं (नागरिक को क्या करना चाहिए)
कानूनी रूप से बाध्यकारीनैतिक रूप से बाध्यकारी

सारांश:

मौलिक अधिकार नागरिकों को स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं, वहीं मौलिक कर्तव्य उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनने की दिशा में प्रेरित करते हैं। दोनों मिलकर लोकतंत्र को संतुलित और मजबूत बनाते हैं।


5. स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता क्या है? 73वें और 74वें संविधान संशोधन के संदर्भ में चर्चा कीजिए।

स्थानीय स्वशासन की आवश्यकता:

  • प्रशासनिक विकेंद्रीकरण

  • जनता की भागीदारी

  • योजनाओं का स्थानीय स्तर पर कार्यान्वयन

  • पारदर्शिता और जवाबदेही

  • ग्रामीण और शहरी विकास में तेजी

73वां संविधान संशोधन (1992):

  • पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा

  • त्रि-स्तरीय प्रणाली: ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद

  • आरक्षण: अनुसूचित जाति/जनजाति और महिलाओं के लिए

  • पांच वर्ष में चुनाव अनिवार्य

  • राज्य वित्त आयोग और योजना आयोग की स्थापना

  • ग्यारहवीं अनुसूची में 29 विषयों का समावेश

74वां संविधान संशोधन (1992):

  • नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा

  • नगर पंचायत, नगरपालिका, नगर निगम का गठन

  • बारहवीं अनुसूची में 18 कार्य, जैसे शहरी योजना, जल आपूर्ति आदि

  • चुनाव, वित्त आयोग और महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था

सारांश:
73वें और 74वें संशोधनों ने ग्रामीण और शहरी स्थानीय स्वशासन को सशक्त किया। यह लोकतंत्र को जमीनी स्तर पर स्थापित कर आम जनता को निर्णय प्रक्रिया में भागीदार बनाते हैं।


Section B


1. संवैधानिक विकास में शासन अधिनियम, 1935 का क्या योगदान था?

  • भारत में संघीय व्यवस्था की नींव रखी

  • प्रांतीय स्वायत्तता प्रदान की गई

  • केंद्र और प्रांतों के बीच शक्तियों का विभाजन

  • सीधी चुनाव प्रणाली की शुरुआत

  • प्रांतीय मंत्रियों को उत्तरदायी बनाया गया

  • भारत के संघ की अवधारणा दी गई (हालाँकि लागू नहीं हो सकी)

  • संघीय न्यायालय की स्थापना की गई

  • इसके कई प्रावधान भारतीय संविधान में अपनाए गए जैसे: संघीय ढांचा, आपातकालीन प्रावधान, सार्वजनिक सेवा आयोग, आदि।

सारांश:
1935 का अधिनियम भारत में संवैधानिक शासन की दिशा में एक बड़ा कदम था। इसने स्वतंत्र भारत के संविधान की नींव रखी।


2. भारतीय संविधान के देशी और विदेशी स्त्रोतों का वर्णन कीजिए।

देशी स्त्रोत:

  • भारत शासन अधिनियम (1935) – संघीय ढांचा, सार्वजनिक सेवा आयोग, आपातकालीन प्रावधान

  • स्वतंत्रता संग्राम व संविधान सभा की बहसें

  • राजनीतिक परंपराएं जैसे पंचायत प्रणाली

विदेशी स्त्रोत:

देशलिए गए तत्व
ब्रिटेन                      संसदीय प्रणाली, विधायी प्रक्रिया, कानून का शासन
अमेरिकामौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, राष्ट्रपति प्रणाली
आयरलैंडराज्य के नीति निदेशक तत्व
ऑस्ट्रेलियासमवर्ती सूची, व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता
कनाडामजबूत केंद्र, अवशिष्ट शक्तियाँ
सोवियत संघमौलिक कर्तव्य
जर्मनीआपातकालीन प्रावधान
फ्रांसगणराज्य, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का विचार

सारांश:

भारतीय संविधान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संविधानों से प्रेरित है। इसमें देशी अनुभवों और विदेशी सिद्धांतों का सुंदर समन्वय है।


3. 42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में अपनाए गए संशोधनों पर निबंध लिखिए।

42वां संविधान संशोधन (1976):

  • प्रस्तावना में तीन नए शब्द जोड़े गए:

    1. समाजवादी – आर्थिक और सामाजिक न्याय

    2. धर्मनिरपेक्ष – सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान

    3. अखंडता – राष्ट्र की एकता और अखंडता

  • संशोधन के पीछे उद्देश्य यह था कि समाज में समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया जाए तथा संविधान की आत्मा को मज़बूत किया जाए।

सारांश:
42वें संशोधन ने प्रस्तावना को समयानुसार अधिक समावेशी और प्रगतिशील बनाया। इससे भारत की संवैधानिक पहचान को स्पष्ट और मज़बूत आधार मिला।


4. केंद्र और राज्यों के मध्य विधायी, प्रशासनिक और वित्तीय संबंधों पर प्रकाश डालिए।

विधायी संबंध:

  • सातवीं अनुसूची के अनुसार: संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची

  • आपातकालीन स्थिति में केंद्र को राज्य विषयों पर कानून बनाने का अधिकार

  • समवर्ती सूची में विवाद की स्थिति में केंद्र का कानून प्रभावी होता है

प्रशासनिक संबंध:

  • अनुच्छेद 256–263

  • राज्यों को केंद्र के निर्देशों का पालन करना होता है

  • अंतर-राज्य परिषद का गठन परामर्श हेतु किया जा सकता है

  • केंद्र राज्यों को विशेष अधिकारी या निर्देश भेज सकता है

वित्तीय संबंध:

  • कर लगाने का अधिकार मुख्यतः केंद्र के पास

  • राज्य वित्त आयोग और केंद्रीय वित्त आयोग के माध्यम से संसाधनों का वितरण

  • केंद्र राज्यों को अनुदान और सहायता प्रदान करता है

  • राज्य सीमित वित्तीय संसाधनों पर निर्भर

सारांश:
केंद्र और राज्य के बीच संबंध संविधान द्वारा संतुलित रूप से तय किए गए हैं, लेकिन केंद्र को अधिक शक्ति प्राप्त है। सहकारी संघवाद के माध्यम से इस संतुलन को बनाए रखने की कोशिश की जाती है।


5. राज्य के नीति निदेशक तत्वों के उद्देश्य और प्रासंगिकता का मूल्यांकन कीजिए।

उद्देश्य:

  • समाजवाद और कल्याणकारी राज्य की स्थापना

  • सामाजिक और आर्थिक न्याय का प्रसार

  • असमानता कम करना

  • शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देना

  • पर्यावरण संरक्षण, संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय शांति

प्रासंगिकता:

  • सरकारी नीतियाँ जैसे मनरेगा, शिक्षा का अधिकार, पोषण मिशन आदि इन्हीं तत्वों से प्रेरित हैं

  • नीति-निर्माण में मार्गदर्शन का कार्य करते हैं

  • यद्यपि न्यायालय में लागू नहीं, फिर भी "राज्य के कर्तव्य" माने जाते हैं

सारांश:
राज्य के नीति निदेशक तत्व समाज में समानता और न्याय की स्थापना के लिए आधारशिला हैं। ये संविधान की सामाजिक आत्मा का प्रतिबिंब हैं।


6. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की विभिन्न शक्तियाँ एवं कार्य क्या हैं? इन दोनों के बीच क्या अंतर है?

राष्ट्रपति:

  • देश का संवैधानिक प्रमुख

  • संसद का हिस्सा

  • मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है

  • अध्यादेश जारी कर सकता है

  • आपातकाल घोषित कर सकता है

  • न्यायाधीश, राज्यपाल, प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है

प्रधानमंत्री:

  • सरकार का वास्तविक प्रमुख

  • मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष

  • राष्ट्रपति को परामर्श देता है

  • लोकसभा में सरकार का नेतृत्व करता है

  • विभिन्न मंत्रालयों में समन्वय करता है

अंतर:

राष्ट्रपतिप्रधानमंत्री
औपचारिक प्रमुखकार्यकारी प्रमुख
सलाह पर कार्य करता हैसलाह देता है
सत्ता का प्रतीकसत्ता का संचालन करता है

सारांश:

प्रधानमंत्री सरकार चलाने वाला प्रमुख है, जबकि राष्ट्रपति संवैधानिक और प्रतीकात्मक प्रमुख है। दोनों मिलकर भारतीय शासन तंत्र को संतुलन प्रदान करते हैं।


7. "राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच अक्सर टकराव होता है" – ऐसा क्यों कहा जाता है? समझाइए।

कारण:

  • राज्यपाल केंद्र द्वारा नियुक्त होता है, जबकि मुख्यमंत्री जनता द्वारा निर्वाचित

  • सरकार बनाने के लिए आमंत्रण में राज्यपाल की भूमिका विवादास्पद हो सकती है

  • विधेयकों को मंजूरी देने में देरी

  • अनुच्छेद 356 की सिफारिश करने की शक्ति

  • कभी-कभी राज्यपाल केंद्र के हित में कार्य करता है, जिससे टकराव होता है

उदाहरण:
विभिन्न राज्यों में जैसे महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु में ऐसे टकराव देखने को मिले हैं।

सारांश:
राज्यपाल और मुख्यमंत्री के टकराव की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब संवैधानिक मर्यादाओं का पालन न हो। राज्यपाल की निष्पक्षता और राजनीतिक तटस्थता जरूरी है।


8. भारतीय संसद के संगठन व शक्तियों की विवेचना कीजिए।

संगठन:

  • राष्ट्रपति

  • लोकसभा (निम्न सदन) – 545 सदस्य

  • राज्यसभा (उच्च सदन) – 245 सदस्य

शक्तियाँ:

  • विधायी शक्ति – कानून बनाना

  • वित्तीय शक्ति – बजट पारित करना, धन विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत होता है

  • कार्यपालिका पर नियंत्रण – प्रश्नकाल, अविश्वास प्रस्ताव

  • संविधान संशोधन – अनुच्छेद 368 के तहत

  • न्यायिक शक्ति – राष्ट्रपति का महाभियोग, न्यायाधीशों की पदच्युति

सारांश:
भारतीय संसद देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है, जो कानून निर्माण, कार्यपालिका पर नियंत्रण और वित्तीय निर्णयों में केंद्रीय भूमिका निभाती है।

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